Wednesday, December 15, 2010
अगले सत्र से ही मेडिकल की साझा प्रवेश परीक्षा
ठ्ठमुकेश केजरीवाल, नई दिल्ली सब ठीक रहा तो मेडिकल कोर्स में दाखिला चाहने वाले छात्रों की मुसीबत अगले शैक्षणिक सत्र से काफी कम हो जाएगी। स्वास्थ्य मंत्रालय इनके लिए दर्जन भर अलग-अलग इम्तिहान के बजाय एक ही साझा प्रवेश परीक्षा लागू करने की तैयारी में है। सुप्रीम कोर्ट से मिली हरी झंडी के साथ ही स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने अगले महीने सभी राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों के साथ बैठक कर उन्हें भी साथ लेने की तैयारी शुरू कर दी है। गुलाम नबी आजाद ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा, अब हम तत्काल इस मामले पर राज्यों से मशविरा करेंगे। इसके लिए 30-31 जनवरी को बेंगलूर में राज्यों के स्वास्थ्य मंत्रियों और स्वास्थ्य सचिवों के साथ बैठक किए जाने का फैसला किया गया है। मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआइ) ने राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) के लिए संशोधित प्रस्ताव मंत्रालय को भेज दिया है। अब राज्यों की सहमति के आधार पर इसे आगे बढ़ाया जा सकता है। एमसीआइ के प्रस्ताव के मुताबिक सभी सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों के दाखिले इसी परीक्षा के जरिए होंगे। मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक आदर्श स्थिति तो यही होगी कि सभी निजी कॉलेज भी इस परीक्षा के जरिए ही अपने दाखिले लें। लेकिन इस परीक्षा को शुरू करने के लिए उनकी सहमति का इंतजार नहीं किया जाएगा। इसे मंजूरी देने से पहले केंद्र सिर्फ राज्यों के साथ बातचीत करना चाहता है। राज्य सरकारें ही निजी मेडिकल कॉलेजों से बातचीत करें। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान एमसीआइ को इस परीक्षा के लिए अधिसूचना जारी करने की छूट दे दी है। मगर कर्नाटक और तमिलनाडु सहित दक्षिण भारत के कुछ राज्यों के विरोध को देखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय इसे अपनी मंजूरी देने से पहले राज्यों की आशंकाओं को दूर करना चाहता है। अभी सीबीएसई से होने वाली एआईपीएमटी परीक्षा के जरिए राज्य सरकारों के मेडिकल कॉलेजों में सिर्फ 15 फीसदी सीटें ही भरी जाती हैं। इसी तरह वे अपने राज्य की नीतियों के मुताबिक आरक्षण व्यवस्था भी लागू करते हैं। ताकतवर प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों की लॉबी भी इस साझा परीक्षा का विरोध कर रही है। एमसीआइ के मुताबिक छात्रों, अभिभावकों और इस पेशे के हित को ध्यान में रखते हुए सभी पक्षों को इस पर सहमति दे देनी चाहिए। इसी तरह राज्यों और प्राइवेट कॉलेजों के विरोध के बारे में ये कहते हैं कि राज्य, अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी और विकलांगों के लिए अलग-अलग मेरिट लिस्ट भी तैयार होगी और स्वीकृत आरक्षण नीति के मुताबिक इन सूची से दाखिले लिए जा सकेंगे।
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